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[ ४० ] चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीप-अक्षतान्, नैवेद्य फलं-वस्त्रं-वासं यजामहे स्वाहा ॥१॥
॥ द्वितीया श्रीसिद्धपद पूजा ॥
॥दोहा॥ दूजी पूजा सिद्ध की, कीजे दिल खुशियाल । अशुभ करम दूरे टले, फले मनोरथ माल ॥१॥
__|| काव्यम् इन्द्रवज्रावृत्तम् ॥ सिद्धाण माणंद रमा लयालं,
णमो - णमोऽयंत चउकयाणं । सम्मग कम्मवखय कारगाणं,
जम्मं जरा दुक्ख निधारगाणं ॥१॥
॥ भुजंग प्रयातवृत्तम् ॥ निजानादि कर्माष्टके क्षय करीने,
___जरा जन्म मरणादि ने हरीने । स्थिता सर्वलोकाग्र भागे विशुद्धा,
चिदानन्द रूपा स्वरूपे प्रसिद्धा ॥१॥ निजानन्द चोधादि युक्त प्रदेशा,
निराबाधनानिता जे अलेशा।