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अथ श्रीमद् यशोविजयजी, देवचन्द्रजी ज्ञानविमलजी, लालचन्द्रजी आदि चार महापुरुषों द्वारा विरचित
॥ नव पद - बड़ी पूजा ॥
॥ प्रथमा अरिहन्त पद पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ परम मंत्र प्रणमी करी, तास घरी उर ध्यान । अरिहन्त पद पूजा करो, निज-निज शक्ति प्रमाण ॥ १ ॥
॥ काव्यम् ॥ उपजाति वृत्तम् ॥
उप्पण्ण सण्णाण महोमयाणं, सप्पाडिहेरासण संठियाणं । सद्द सणार्णदिय सज्जणाणं, णमो - णमो होउ सया जिणाणं । १
॥ भुजङ्ग प्रयात वृत्तम ॥
नमोऽनंतसंत प्रमोद प्रदानं,
प्रधानाय भव्यात्मने भास्वताय ।
था जेहना ध्यानथी सौख्यभाजा,
सदासिद्धचक्राय श्रीपालराजा ॥१॥
करयाकर्म दुर्मर्म चकचूर जेणें,
भलांभव्य नवपद ध्यानेन तेणे |