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विश्वसेन अचिरा जी के नन्दा,
शान्तिनाथ मुख पूनम चंदा || जय जय० १॥
चालिस धनुष सोवनमय काया,
मृग लंछन प्रभु चरण सुहाया || जय जय० २॥ चक्रवर्ती प्रभु पंचम सोहे, सोलम जिनवर सुर-नर मोहे || जय जय० ३ || मंगल आरती प्रभु की कीजे,
जनम जनम को लाहो लीजे ॥ जय जय० ४ ॥ कर जोड़ी "सेवक" गुण गावे,
सो नर-नारी अमर पद पावे || जय जय० ५॥
॥ मंगल दीवो ॥
दीवो रे दीवो मंगलिक दीवो,
भुवन प्रकाशक जिन चिरंजीवो ॥ ढेर | चन्द्र सूरज प्रभु तुम मुख केराँ,
छण करताँ दे नित फेराँ || दीवो रे० १॥ जिन तुझ आगल सुरनी अमरी,
मंगल दीप करे देई भँवरी || दीवो रे० २ ॥