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वृहत् पूजा-संग्रह
( तर्ज - धन धन ऋषभदेव भगवान युगला धर्म निवारण वाले ) फूल से कोमल हैं भगवान्, हृदय करूणा रस भरने चाले । फूल से पूजो श्री भगवान, सुवासित चित को करनेवाले ॥ ढेर || प्रभु की पूजा लाभ अनन्त, लाभ अन्तराय का होता अन्त । अचिन्तन लाभ विषय भगवन्त, पूजो लाभ को लेनेवाले ॥ फू० ॥ १ ॥ नफा नित दीखे अपरंपार, टोटा लगता वारंवार । लाभ में अन्तराय । अधिकार, समझो लाभ को लेनेवाले || फू० || २ || दान से लाभ लाभ से दान, दोनों में है भाव प्रधान । विवेकी करलो अनुसन्धान, दान से लाभ को पानेवाले || फू० ||३|| अगर हो लाभ विधन का जोर, मिलती कहीं न उसको ठोर । बनते साहुकार भी चोर, करम चक्कर में आनेवाले ॥ फू० ॥ ४ ॥ जल थल नभ में काम अनेक, करलो होवे लाभ न नेक | सोचो कारण कौन विवेक, लाभ में लिप्सा रखनेवाले || फू० || ५ || देकर अन्तराय आनन्द, मानो तभी लाभ में फंड | होते होता है आक्रन्द, करम निश्चित फल देने वाले || ० || ६ || पाओ प्रभु पूजा का लाभ, जगती ज्योति है अभिताम । कहीं भी होता नहीं अलाभ, पुण्य फल हैं सुख देनेवाले || फू० ॥ ७ ॥ पुद्गल लामे
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