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___ आयुष्य कर्म निवारण पूजा ४४१ साथ रहे इस लोक में, चले साथ परलोक ।
प्रभु पूजा का पुण्य फल, भरदे भाव अशोक ||२|| (तर्ज गजल-कहीं हँसना कहीं रोना इसी का नाम दुनिया है )
चतुर्गति दुःख फल हरणी, करो फल पूज जिनवर की। मिटे भव कैद शिव करणी, करो फल पूज जिनवर की ॥ टेर || नरक में दुख था भारी, न पाया नाथ का दर्शन । सुदर्शन प्राप्त करने को, करो' फल पूज जिनवर की ॥ च० ॥ १॥ गति तिर्यञ्च में केवल, भरा अविवेक था भारी। हिताहित ज्ञान पाने को, करो फल पज जिनवर की ॥च० ॥२॥ पड़ी पग पुण्य की चेडी, फंसे सुर भोग में हरदम । अगर स्वाधीनता चाहो, करो फल पूज जिनवर की ॥ च० ॥ ३ ॥ मिला है देव दुर्लभ तन, यहाँ नर जन्म जीवन में | रतन चिन्तामणि जैसा, करो फल पूज जिनवर की ॥ च० ॥ ४ ॥ उडाने काग को जैसे, न भोगों में खतम करना । सफलता प्राप्त करने को, करो फल पूज जिनवर की ॥ च० ॥ ५ ॥ प्रभु सुद वीतरागी हैं, न पूजा को कमी चाहें । अगरचे पूज्य होना हो, करो फल पूज जिनपर की ॥ च० ॥६॥ सुखों के दिव्य सागर हैं, प्रभु भगवान उपकारी। दुखों