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मोहनीय कर्म निवारण पूजा ४२५ ॥ सप्तम नैवेद्य पूजा ॥
॥ दोहा॥ भाव अवेदी श्री प्रभु, पूजो धर नैवेद्य । द्रव्यालम्मन भाव से, मिटे वेद का सेद ॥१॥ आप अवेदी आतमा, कर्म जनित हैं वेद ।
भावो ऐसी भावना, वेद रहे ना सेद |२|| (तर्ज-काटो लागो रे देवरिया मोसे संग चल्यो ना जाय)
काम यो कैसे जीत्यो जाय, काम यो कैसे जीत्यो जाय । प्रभु पद को धर ध्यान, काम यो ऐसे जीत्यो जाय ॥ टेर ॥ रसना लम्पट जन जीवन में, जहां तहां भटकाय । नैवेद्य त्याग लाग प्रभु पूजा, लम्पटता मिट जाय ॥ का० ॥१॥ सडन पड़न विध्वंसन भावी, पुद्गल बना शरीर । नव दश द्वारों से मल मरता, हम हैं वही अधीर ॥ का० ॥२॥ नहा धोकर कर टाप टीप, मुन्दरता दिखलाते । रोम रोम से झरता है मल, पर इम इठलाते ॥ का० ॥ ३ ॥ नर को नारी नारी को नर, प्यार परस्पर करते। पुद्गल से मिल जुल कर के हम, जीते भी हैं मरते ॥ का० ॥ ४॥ दिन अन्धा कोइ अन्धा राते, काम अन्ध दिन रात । नर नारी नपुंसक वेदी, खेद दुःख नित पात || का० ॥ ५ ॥ नवमे