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वृहन् पूजा-संग्रह
(तर्जं गजल - कुशल गुरु देव के दर्शन मेरा दिल होत है परसन )
सिले परमात्म पद दर्शन, घड़ी धन भाग वह जानो । अगर हो आत्मगुण दर्शन, घड़ी धन भाग वह जानो || टेर ॥ लगा है आवरण- पहरा, उसी गुण दिव्य दर्शन
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पर । हटाया जाय उसको तो, घड़ी धन भाग वह जानो ॥ भि० || १ || प्रभु दर्शन प्रभु वन्दन, प्रभु पूजन के करने से। प्रकटता भाव गुण दर्शन, घड़ी धन भाग वह जानो || मि० || २ || तपोधन ज्ञानधन जीवन, सुजन विधि वरविधानों से । यहाँ पाते वहाँ पाते, घड़ी धन भाग वह जानो ॥ सि० || ३ || अचक्षु चक्षु दर्शन से, सदा जड़ भाव में रमते । बढ़ा भव भय हटे वह तो, घड़ी धन भाग वह जानो || Ho || ४ || अचक्षु चक्षु दर्शन में, करो संयम चनो योगी ।' प्रकट हो सत्य शिव सुन्दर, घड़ी धन भाग वह जानो || मि० || ५ || करें नर आत्म दर्शन वे, यहाँ भगवान होते हैं । करो पद बन्दना उनकी, घड़ी धन भाग वह जानो || सि० || ६ || जगत सत चेतना चेतन, अचेतन तज भजो चेतन । सहज में हो सुदर्शन भी घड़ी धन भाग यह जानो || मि०|| ७ || हमेशा हरिकवीन्द्रों ने प्रभु दर्शन