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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ काव्यम् || पीयूष पेशल रसोत्तम भावपूर्णे, दिव्यैफलैर्गुणमयै वर्लशालिभिश्च । भक्त्या समर्प्य विधिना प्रयजामहे श्री, वीरं सदाशिवफलाप्तिकृते समन्तात् ।
मन्त्र — ॐ ह्रीं अर्ह परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय ज्ञानावरणीय कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।
॥ कलश ॥
आठवें दिन की पूजा ( अन्तराय कर्म निवारण पूजा ) के अन्त में प्रकाशित कलश बोलें
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