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ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा ३८५ प्रभु गुण अमृत जो मिले, भूख दुःख हो दूर। प्रभु पद में नैवेद्य धर, चाहूं वही हजूर । (तर्ज-तुम चिघन चन्द आनन्द लाल तोरे दर्शन० )
प्रभु गुण अमृत धाम, श्याम तोरे शासन में सुख भारी || श्या० ॥ टेर ॥ पुद्गल सोचा पुद्गल रोचा, पुद्गल से हो विकारी ॥ श्याम० ॥ आतम मूल भूल अपनी से, भर भटका हो मिखारी ॥ श्याम० ॥१॥ उलटा कारण उलटा कारज, होता सगत सारी ॥ श्याम० ॥ ज्ञानावरण बढा अज्ञानी, आतम दुस अपारी ॥ श्याम० ॥ २ ॥ घोर घटा घन की जब छाये, छिप जाता तिमिरारि ॥ स्याम० ॥ वायु वेग बढ़े धन हटते, प्रकटे ज्योतिधारी ॥ श्याम० ॥ ३ ॥ आतम सर्व प्रदेश अबाधित, ज्ञान भरा अविकारी ॥ श्याम०॥ कर्मों का परदा हटने से, ज्योति सरूप उदारी ॥ श्याम० ॥४॥ केवल ज्ञान कला प्रफटेगी, क्षायिक भाव प्रकारी ॥ श्याम० ॥ पुद्गल संगी तर्क विचारे, मीमांसक मति हारी || श्याम० ॥ ५॥ जन होता भगवान अनंते, भगवान हैं जयकारी ॥ श्याम० ॥ आतम सत्ता अपनी अपनी. दर्शन जैन विचारी || श्याम
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