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॥ वस्तु छन्दः ॥
पुण्य उदय, पुण्य उदय - उपना जिन्नाह । माता तन रयणी समें - देखी सुपन हरसन्त जागिय ॥ सुपन कही निज कन् ने -सुपन अस्थ सॉभलो सोभागिय ।। त्रिभुवन तिलक महागुणी - होशे पुत्र निधान || इन्दादिक जसु पाय नमी - करसे सिद्धि विधान ||७||
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॥ ढाल ३ ॥
तर्ज- चन्द्रावलानी
सोहमपति आसनकपीयो देई अवधे मन आणंदियो । मुझ आतम निर्मल करण काज - भवजल तारण प्रगट्यो जहाज || १ || भव अडवी पारंग सत्थवाह — केवल नाणाइय गुण अगाह | शिवसाधन गुण अकूर जेह-कारण उलट्यो आपाढि मेह ||२|| हरपे विकसे तब रोम राय --- वलयादिक माँ निज तन् न माय । सिंहासण थी उठ्यो सुरिन्द - प्रणमन्तो जिण आनन्द कन्द ||३|| सग अड़पय समुहा आवीतत्थ - करी अंजली प्रणमिय मत्थ- सत्य । मुस भासे ए क्षण आज सार— तियलोय पह दीठो उदार ॥ ४ ॥ रे ! रे ! निसुणो सुरलोय देव
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