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वृहत् पूजा-संग्रह समझे नहीं, समझेगे समझनहार || शा० ॥ ३ ॥ पड़ दर्शन में देख लो, है त्रिभुवन तारणहार ।। शा० ॥ ४ ॥ जीव अनन्ते प्रभु अनन्ते, का नित करे विधान ॥शा०॥५॥ आतमगत करतापणे, का देता बोध महान ||शा० ॥६॥ कर्याकार्य विचारणा, का जिससे होत विवेक ॥ शा० ७॥ स्वावाद सर्वोदयी, यह शाश्वत शिव-पथ एक ||शा० ॥८॥ सम्यग्दर्शन-ज्ञान से, जो हो आतम सम्बन्ध ।। शा० ॥६॥ हरि कवीन्द्र तो हो गई, वह सोने वीच सुगन्ध ॥ शा० ॥ ८ ॥
॥ हरिगीत छन्द ॥ संसार को जाना न जाना आतमा को धूल है, वह जानकारी जान लो बस मूल में ही भूल है । निज आतमा को जानना परमात्म पद का मूल है, वह दिव्य सम्यग्ज्ञान हो भव शूल भी सब फूल हैं।
मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं अहं परमात्मने अनन्तानन्त सम्यग्ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय अष्ट द्रव्य यजामहे स्वाहा।