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श्री महावीर स्वामी पूजा
३४३ वामुदेव पहिला त्रिपृष्ट वह, अचल बन्धु वलदेव । पूर्व विरोधी सिंह हनन कर, सफल निदान करेन ॥ प्र० ॥ प्रति केशव अश्वग्रीव विजय से, जय वरमाल वरे । शण्यापालक गीत निनोदी, सीसा कान भरे ॥ प्र० ॥ ६ ॥ नमस्य को नहीं दोप-रोप फल, किन्तु निकट सरे। मुख सागर भगवान प्रभु पद में, सब अन्त करे । प्र० ॥ ७ ॥ हरि कीन्द्र जन भन्य प्रभु से, प्रभुता सहज परे । दीपक मे दीपक प्रकटे ज्यों, अन्धकार टरे । प्र० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् ॥ यो ऽकल्याणपदं० ॐ दी श्री अहं श्री महावीर स्वामिने जलादि अष्ट. दन्यं यजामहे स्वाहा। | पंचम चक्रवर्ती पद प्राप्ति पूजा ॥
|| टोहा।। उच नीच व्यवहार से, कर्म रूप व्यबहार ।
निश्चय से परमात्म पद, पूजो गित निकार ॥१॥ (राग मान-भोनामर म्यामी पन्तरजाती तारी पारम नाय)
निन फर्म मुधागे नित निग्धागे, प्रभु पूजा नपकार ॥ नि० ॥ ॥ कमी का मंमार है यह, गुप दुग फर्म रिपसा अन्तमान गति त्रिप मप्तम, नाक में दंग