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वृहत् पूजा-संग्रह
(तर्ज-पंछी बावरिया) __प्रभु जीवन अवधारो, विवेकी नर नारी। राग द्वेष तज डारो, विवेकी नरनारी ॥टेर॥ कमठ कुटिल रत विषय विकारे, भाई मरुभूति को मारे । तजो विषय विष भारी, विवेकी नरनारी॥०॥१॥ राजा अरविन्द भाव विचारें, साधु हो निजकाज सुधारें। साधु बनो अधिकारी, विवेकी नरनारी ॥ प्र० ॥२॥ मरुभूति मर होता हाथी, अरविन्द साधु संत संगाथी । समकित पाया पाओ, विवेकी नरनारी ॥ प्र० ॥ ३॥ कुर्कुट सांप कमठ हो डसता, मरुभूति गज को परवशता। महामोह को देखो, विवेकी नरनारी ॥ प्र० ॥ ४ ॥ हाथी शुभध्याने सुर लोके, पहुँचा रहता भाव अशोके। बनो सदा शुभ ध्यानी, विवेकी नरनारी ॥ प्र० ॥ ५ ॥ कमठ सांप दावानल में जल, गया नरक में पाप करम बल । तजो पाप दुखकारी, विवेकी नरनारी ॥ प्र० ॥६॥ मरुभूति चौथे भव राजा, किरण वेग हो साधु सुकाजा । करो सुकाज उदारा, विवेकी नरनारी ॥प्र०॥७॥ कमठ नरक निकला अहि होता, किरणवेग को डश खुश होता। करम राज बलिहारी, विवेकी नारीनारी ॥ प्र० ॥ ८॥