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श्रीगिरनार तीर्थ पूजा ३१३ ॥ अष्टम फल पूजा ॥
॥ दोहा ॥ परम पुरुष परमातमा, परमानन्द प्रधान । परमेश्वर प्रभु पूजिये, परम विज्ञान निधान ॥१॥ अष्टमी पूजा जिन तणी, अष्टमी गतिदातार । फल पूजा करो भावसु, जिम लहो सुख अपार ॥२॥
॥रागणी काफी त्रिताल ॥ उज्जयंत गिरिगुण गावो, तुमें मणिमाणिकसे वघावो || उज्जयंत० ॥ नेमि जिनेसर जगअलवेसर, मन मंदिरमा लावो । जिनवर चरणनो शरण ग्रहीने, समरणमा लयलावो ॥ मणिमा० ॥१॥ तीर्थपति बावीसमा स्वामी, नेमि निरंजन ध्यावो । भविक जीव सुखकारण तारण, जिनदरशन मन भावो ॥ मणि ॥२॥ दोय मेद दरशनना जाणो, शुद्धशुद्ध स्वभावो । शुद्ध दरशनथी निज गुण प्रकटे, आतम गुणहुलसावो । मणि० ॥३॥ काल अनादि भवनमे भटकता, कर्मरिषु गण दहयो । कृपाकरी मुज दरशन दीजे, अनुभव अमृत पावो ॥ मणि० ॥ ४ ॥ नाना जातीना फल लेईने, आगल प्रभुजीने ठागो । कृपाचंद्र फल पूजासे यह मनमाछित फल पायो । मणि० ॥ ५ ॥ ___ मत्र-ॐ ह्रीं श्री पर०" " फल यजामहे स्वाहा ॥