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वृहत् पूजा संग्रह
( तर्ज - अवतो पार भये हम साधो ) दीक्षा उत्सव करे सुखकारी, सुर सुरपति मिल चार प्रकारी || दी० ॥ अंचली ॥ सरखारथ सिद्ध से चत्री आयो, रथ जीव हुओ अवतारी । शांति प्रभु सुत नाम दियो शुभ, चक्रायुध निज सम अधिकारी || दी ० || २ || क्रमसे षट खंड साधी प्रभुने, चक्री पद लीनो अब धारी । अवधिज्ञान से समय को जानी, कीनी संयम लेन तैयारी ॥ दी० ॥२॥ लोकांतिक आ अरज गुजारें, अपनी अनादि रीति विचारी । नाथ तीरथ वरताओ जगमें, होवे जिन शासन जयकारी || दी० || ३ || वरसी दान देह प्रभु दीनो, चक्रायुध को राज्य आचारी । चक्रायुध सुरपति मिल कीनो, दीक्षा उत्सव आनंद भारी || दी० || ४ || जेठ वदि चौदस भरणी शशी, छठ तप कीनो सिद्ध नमोकारी | शांति प्रभु दीक्षा कल्याणक, साथ हुए नृप एक हजारी || दी० ॥ ५ ॥ नंदीश्वर जा उत्सव कीनो, दीक्षा कल्याणक मनोहारी | आतम लक्ष्मी प्रभु पूजम से, होवे वल्लभ हर्ष अपारी || दी० ॥ ६ ॥
|| काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ॥ अशान्तिजिननाथाय जलादिकं यजामहे स्वाहा ||३||