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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा
(तर्ज सोहनी ढ ूढ फिरा जगसारा )
जनमत जिन सुखकारा, सुखकारा भविजन कीजे अर्चना ॥ अं० ॥ गर्भसमय पूरण जय होवे, शुभ ग्रह शुभदृष्टि से जोवे । ऊचपना लिये धारा, सुसकारा भविजन कीजे अर्चना | जनमत० ॥ १ ॥ जेठ वदि तेरस सुखकारी, भरणी साथ निशाकर १ धारी । जनमे जिन जयकारा, सुखकारा भविजन की अर्चना || जनमत० ॥ २ ॥ मात • पुत्र दुःख दोनों न पावे, तीर्थंकर स्वभाव प्रभावे । त्रिभुवन होवे उजारा, सुखकारा भविजन कीजे अर्चना ॥ जनमत० ॥ ॥ ३ ॥ नारक भी उस क्षण सुखी थावे, आनंद मगल लोक मनावे | शुभमें शुभ अधिकारा, सुखकारा भविजन, कीजे अर्चना | जनमत० ॥ ४ ॥ मृग लंछन कांचन छवि प्यारी, आतम लक्ष्मी जाउ बलिहारी । वल्लभ हर्ष अपारा, सुखकारा भविजन कीजे अर्चना || जनमत० ॥५॥
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|| काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ||
श्रीमदर्हते जलादिकं यजामहे स्वाहा || २ ||
१ चंद्र |
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