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हत् पूजा.
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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ दोहा ।। पुंडरकिणी नगरी भली, राजा घनरथ सार । प्रियमति और मनोरमा, दो तस सुन्दर नार ॥१॥ ग्रैवेयक पूरण करी, वज्रायुध निज आय१ । प्रियमति उदरे आवियो, मेघ सुपन दरसाय ॥२॥ सहस्रायुध रथ स्वप्नसे, मनोरमा उर धार । समये सुत दो ऊपने, आनंद हर्ष अपार ॥३॥ नाम मेघरथ ठानियो, प्रियमति सुत अभिराम । मनोरमा सुत धारियो, दृढ़रथ सुन्दर नाम ॥४॥ यौवन वय शादी२ हुइ, नंदिषेण घनसेन३ । तनय मेघरथ जानिये, दृढ़रथ सुत रथसेन ॥५॥
(तर्ज-कुबजाने जादू डारा) धन्य धनरथ नृप अवतारा, जिने सार लिया संसारा ॥ धन्य० ॥ अं० || एक दिन पुत्रप्रपुत्र सहित नप, अंतेउर परिवारा । नाना विनोद करत उसवेरा, गणिका वचन उचारा ॥ धन्य० ॥१॥ देव मेरा यह कुर्कुट जिसके, कुर्कुटसे जाय हारा। लाख सुनैये देऊ उसको, सच्चा प्रण है म्हारा ॥ धन्य० ॥ २ ॥ राणी मनोरमाने मंगवाया,
१ आयु । २ शादी-विवाह-लान । ३ मेघसेन ।