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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा २७३ सहसायुध ठवी नाम महोत्सन विधविध तात करावे । यही रोति सब समारा ॥ धन्य बनायुध अवतारा ॥२॥ यौवनश्य कलावान कहायो, दादा दादी दिलमें सुहायो, नृपपुत्री कनकधी करायो, आनद मगल मग्न समायो । प्र० ॥ तिसकामी सुत हुवा अनुपम शतालि नाम धराया, बैठे एक दिन सत्र परिवारे क्षेमकर महाराया। ईशानेंद्र देवसमामें वज्रायुध गुण गाया, चित्रचूल सुर माने नाही लेन परीक्षा आया। जग दुर्जन यह अधिकारा || धन्य वज्रायुध अवतारा ||२|| नास्तिक मतिसे सुर प्रश्न कीनो, समकित में वज्रायुध लीनो, उत्तर सुरको यथारथ दीनों तू प्रत्यक्ष विरोध में मीनो । प्र० ॥ सुद ही अपने ज्ञानमे देसो पूर्व भव क्या कीता, सुकृत जिसका फल वैभव यह सुरभवका है लीता । पूरख भव थे ना तुम इस भव देन जीव है जीता, इस भव परमा उमय लोक है सिद्ध वचन यह गीता । कहे जिनपर महगणधारा ॥ धन्य वज्रायुध अवतारा ॥३॥ चित्रचूल कहे धन्य बलिहारी, भवजल गिरतो लीनो उगारी, चिर मिथ्यात्व में दीनो विसारी, दीजे समकिन मुम उपकारी ॥ प्र० ॥ वनायुधने समकित दीनो सुर महे अति हरखाना, किंकर हूँ मैं तुमरा स्वामी
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