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________________ पर)। ६ प्रभु के उदर ( अर्थात् नाभि पर ) इस प्रकार क्रम से केशर-चन्दन के पूजा करनी चाहिए। ___ तथा सवसे पहले पूजक (स्नात्रिये को) अपने चार अंगों में-१ भाल ( ललाट)। २ कंठ (गले में )। ३ उर (हृदय) में और ४ उदर ( नामि ) में तिलक करके पूजन में प्रवेश होना चाहिए। प्रभु के नव अंगों के दोहे (मंत्र) यहाँ विस्तार से न लिखकर केवल नव अंगों के नाम लिखे है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पहले मूलनायकजी की पूजा वाद में अन्यान्य स्थापित तीर्थंकर प्रतिमाओं का पूजन, पीछे गणधर पूजा, नवपदयंत्रादि उसके बाद आचार्यादि की प्रतिमा पूजन, फिर शासनदेवी भैरूजी आदि की पूजा करनी चाहिये। कई लोग आट मंगलपट्ट की पूजा करते हैं किन्तु वह पूजा करने की वस्तु नहीं वह तो भगवान के सामने चढ़ाने की है। आटमंगलीक ावलों से मांडे जाते हैं या पट्टक सामने चढ़ाया जाता है। पूजा करने वालों स्नात्रियों) को यह बरावर ध्यान में रखना चाहिये कि उनके शरीर में यदि जरा भी अशुचि हो, जैसे-शरीर में कहीं भी घाव-फोड़ा-फुसी के कारण मवाद-पीब आदि आता हो तथा स्त्रियों को, खास जो रजस्वला हो तो, चार दिन तक तथा ऊपर लिखे रोगियों को पूजा नहीं करनी चाहिये। और जिन्होंने शव (मुर्दा) उठाया हो वे तीन दिन तक तथा जिनके घर में
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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