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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा यौवन वय राजा हुओ, दो श्रेणी भरतार । विद्यावल मेरु गिरि, सिद्धायतन जुहार ॥ ३ ॥ शाश्वत जिन वदन लिये, आयो सह परिवार । पूर्व सहोदर देसके, जाग्यो स्नेह उदार ॥ ४ ॥ बोध दियो हरि भाडको, करो त्याग संसार । मानलियो गुरुवचन सम, मानी अति उपकार ॥ ५ ॥
(तर्ज वसन्त होई आनन्द बहार) धर्म सदा जयकाररे भवि धारो हियेमें । धारो हियेमें सारो जिये में, धर्म सदा जयकार रे भवि०॥०॥ अमरगुरु नामा मुनिरे, आये करत विहाररे ॥ भवि० ॥ १ ॥ मेघनाद विद्याधरे रे, लीनो सयम भार रे ॥ भवि० ॥२॥ एक दिवस मेरु गिरि रे, लायो ध्यान उदाररे भवि०॥३॥ अश्वग्रीव नंदन अरिरे, पूरव भव अनुसाररे । भवि० ॥४॥ दैत्य हुओ भटकत भवरे, वैर मुनिपर धाररे ॥ भवि० ॥ ५ ॥ कष्ट दिये दिये कई जातकैरे, सहन किये अनगाररे ॥ भवि० ॥ ६॥ आतम लक्ष्मी हर्पसेरे, मुनि अनशन अवधाररे ॥ भवि० ॥ ७ ॥ अच्युत सामानिक हुओरे, वल्लम हर्ष अपाररे । भवि ॥ ८॥