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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा २६१ प्र० १७॥ मोह विलसित सारा ससार, समझो सोचो करो निरधार । राग द्वप मोहको त्यागो, आतम लक्ष्मी मुनि पथ लागो || प्र० ॥८॥
॥दोहा॥ धिक धिक हम पशुतुल्यको, इम बोले दो भ्रात । गुरुसम हम समझाइया, धन्य पूर्व भर मात ॥१॥ छोर१ सकल ससारको, धर्म रुचि गुरुपास । चार सहस नृप साथमें, व्रत लीनो सुसरास ॥२॥ शुक्ल ध्यान दावानलें, कर्म काप्टको जार । सिद्धि नगर वासा किया, आवागमन निवार ॥३॥ आयु युगल पूरण करी, स्वर्ग सुधमें जाय। काल करी नरलोकमें स्थनू पुरभैर आय ॥४॥ अर्फ३ कीर्ति सुत ऊपनो, ज्योतिर्माला पेट । अमिततेज अभिधा धरे, मात पिता दुस मेट ॥५॥ १ इन्दुपेग बिन्दुपेग दोनों भाई। २ भरतक्षेत्र वताढय पर्वत रथन् पुरचनचाल नाम का नगर ।
३ ज्वलनजटी विद्याधरपुत्र अर्ककीर्ति की स्त्री ज्योतिर्माला की कूस से श्रीपेण का जीव पुनपने पैदा हुआ जिसका नाम अमिततेजा रखा।