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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा २४६ नाथ, देवे भवि जो निज हाथ । उतरे झटपट भव पाथ, प्रभुके ध्यान लगानेवाले ॥ धन० ॥ ३ ॥ श्रेयांस दियो उपदेश, समझे तब लोक अशेप । विचरे भू पीठ जिनेस, करम जंजाल मिटानेवाले ॥ धन० ॥ ४ ॥ सहते परिपह भगवान, विचरे सम सहस प्रमान । आतम लक्ष्मीको न दान, हर्ष वल्लभ जिन पानेवाले ॥ धन० ॥ ५ ॥
॥दोहा॥ पुरिम तालमें अन्यदा, आए ऋपम जिनंद । वट नीचे प्रतिमा रहे, तप अष्टम आनन्द ॥१॥ कमधनको जालके. ध्यानानलसे नाथ। फाल्गुन यदि एकादशी, केवल नाण सनाथ ॥२॥ आशन कपे इन्द्रका, आवे सुर परिवार । समवसरण रचना करे, जिन शासन जयकार ॥३॥ सिंहासन बैठे विभू, पूर्व दिये उपदेश । तीन दिशि प्रति निंवमें, मेद नहीं लपलेश ॥४॥
॥होरी ॥ (तर्ज-हरि आवत ये करजोडी ) जगत उपकार करनको, प्रभुवाणी चदे सुखकारी ॥ अचली || चार जातिके देवने मिलकर, समवशरण रच्यो भारी। द्वादश पर्पद गह तिग मोहे, मन मोहे प्रभु