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वृहद् पूजा-संग्रह
द्रव्यं यजामहे स्वाहा || इति प्रथम च्यवन कल्याणक
पूजा ॥ १ ॥
हीरा चढ़ावें पुष्प गुलाबजल वर्षा करे ।
॥ द्वितीय जन्मकल्याणक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ प्रगटे पतित पावन प्रभु, अधम उधारण काज । नृपकुलमा अवतरे, त्रिभुवनके शिरताज ॥ ॥ राग सोरठी ॥
आज अधिक आनन्द भयो रे वाला, आज सुरंग बधाई रे । आछो जगपति जिनवर जनमिया रे वाला, सुखधुबन मिल आई रे || १ || आछो आज आनन्द घन उलट्योरे देवा, दिशि कुमरी हरखाई रे । आछो दश दिश निर्मलता थई रे देवा, फूल रही वनराई रे || २ || आछो फूले फूली बनलता रे वाला, मधु मालती महकाई रे । आछो शालि प्रमुख सहु धान्यनी रे वाला, निपजी राशि सवाई रे ||३|| आछो नारकी जीवे नरकमां रे वाला, क्षण इक शाता पाई रे । आछो सव जन मन हरषित भयो रे बाला, भूमंडल छवि छाई रे ||४|| आछो शुभ मुहूरत