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आर्या श्री पुष्पाश्रीजी महाराज
लोक में कई आत्माएँ लाखों योनियों में भ्रमण करते हुए क्रमिक विकास करके इस अमूल्य मानव देह को प्राप्त करती हैं । लेकिन मानव देह पाकर आत्मा पिछले कष्टों को भूलकर भोग बिलास के द्वारा जो भी कर्मजाल उसने पूर्वजन्मों में भोगा है उसे ही पुनः शुरु कर देती हैं। कुछ ही ऐसी पावन पुन्यात्माएँ होती है जो सजग सावधान होकर वैराग्य भावना से इस मानव देह रूपी पुद्गल की सहायता से अपने शेष कर्मों को नष्ट कर मुक्ति पद की ओर अग्रसर होती है ।
ऐसी ही एक सचेतन आत्मा ने वकील मोहनलाल हीमचन्द के कनिष्ठ पुत्र रतिलाल भाई की धर्मपत्नी चम्पा बहन की कुक्षि में मानव देह धारण कर बैसाख सुदी सप्तमी वि० स० १६८४ को बड़ौदा (गुजरात ) के निकटवर्ती पादरा प्राम में पदार्पन किया । नाम शान्ता बहन रखा गया। जो अपने नाम के अनुकूल बचपन से ही पूर्वार्जित पुण्यों के फल से शान्त प्रकृति की थी । बचपन से ही धार्मिक वातावरण में पलती हुई आपको इस असार संसार में रूचि नहीं थी । आपकी बड़ी बहन जिनका नाम विद्या बहन था, सं० १६६६ में खरतरगच्छाधिपति सुखसागरजी म० सा के समुदाय में पू० प्रवर्तिनी विचक्षणश्रीजी म० सा० के पास दीक्षित हुई । आप उसी समय से पूर्ण वैराग्य भावना से रहने
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