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वीसस्थानक पूजा
१२७ ॥ काव्य ॥ सग्गापवग्गग्ग सुहप्पयस्स, सुनिम्मलाणंत गुणा-लयस्स । सम्बन्चया भूपण भूपणस्स, णमोहि सीलस्स असणस्स ॥१॥ ॐ ही श्री ब्रह्मचर्याय नमः अष्टद्रव्य यजामहे स्वाह ॥१२॥ ॥ अथ त्रयोदशी क्रियापद पूजा ॥
॥दोहा॥ करम निरजरा हेतु है, अपरक्रिया गुण खाण । जिनशासननी स्थिति रहि, किरियारूपे जाण ॥ भुवनमाहि किरिया मही, सफल शुद्ध विहार । प्रवरनाण दरिसणतणो, शुद्ध किरिया सिणगार ॥
|| राग मालवी गौडी ॥ (तर्ज-सन अरति मयनमुदार धूपं ) शुम ध्यान किरिया हृदय धरोने, धर्म सकल उरधार रे। आर्त रौद्रनी हेतु किरिया अशुम पणनीस वार रे ।। शु० ॥१॥ ज्ञानात अशस्त्र मट है, किरिया शस्त्र वतस रे। सुमट नाणी क्रियाशस्त्रे, करे फर्म अरिध्वस रे ॥ शु० ॥२॥ ज्ञानसेति यदे शिव यदि, तेरमे गुणठाण रे । एकनाणं करि जिनेमर, किमु न लहे निरसाण रे ॥ शु० ॥३॥ जिनप शैलेशीकरण करी, चउढमे गुणठाण रे। सरस