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वीसस्थानक-पूजा वाला, ध्रुवता त्रिपदी संगे रे। प्रभुमें अनत चतुष्कता रे वाला, सोहे शमक्रम भगे रे ॥ ५ ॥ पनर भेदै ए सिद्ध थया रे चाला, सहजानंद स्वरूपी रे ॥ परम ज्योतिमें परिणम्यारे घाला, अव्यावाध अरूपी रे ॥ ६॥ जिणवर पण प्रणमैं सदा रे वाला, एहने दीक्षा अवसरे रे । तिण प्रभुपद गुणमालिका रे वाला, कठं धरिये सुपरे रे ॥ ७ ॥ हस्तिपाल भवि भगतिशुरे वाला, सिद्ध परमपद भजिने रे। पद श्रीजिनहरसे लयो रे वाला, परगुण परणति तजिने रे ॥८॥
॥काव्य ।। लोगग्गभागोपरि संठियाण बुद्धाणसिद्धाण मणिदियाण | निस्सेस कम्मख्खय कारगाण, णमोसया मगल धारगाण ॥१॥ ॐ हीं श्रीसिद्धेभ्यो नमः अष्ट द्रव्य यजामहे स्वाहा ॥ २ ॥ || तृतीय प्रवचनपद पूजा ॥
॥दोहा ।। पद तृतीय प्रबचन नमो, ज्यू न भमो ससार । गमो कुमति परिणमनता, दमो करण भयकार | जेसे जलघर वृष्टिते, असिल फलद विकसाय । तैसे प्रवचनभक्तित, शुभ परिणति उलसाय ॥