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वीसस्थानक-पूजा पददरस, पारस फरसते हुवे, प्रगट निज रूप परिणति विभास । तजिय बहिरात्म, गिरिसारता भवि लहे, अनुपम आत्मकांचन प्रकाशं ॥ अइयो ।। ३ ॥ हुवह जिनराज पद, जाप रवि किरणते, तुरत बहु दुरित भर तिमिर नाश । घनचिदानन्द वरकंदघन भवि लहे, तीर्थकरचरण कमलाविलासं || अइयो ।॥ ४ ॥ वर विवुध मणि लही काच लघु शकलकों, ग्रहण करवा कवण कर पसारे। तिम लही जिन चरण, शरण शुभ योगसे, अवर सुरशरण कुण हृदय धारे ॥ अइयो ॥ ५ ॥ प्रभु तणे पंच, कल्याण केरे दिने, प्रगट तिहु लोक में हुइ उजेरो । भविक देवपाल, श्रेणिक प्रमुख जिन नमी, बाधियो गोत्र जिनराज केरो ॥ अडयो ॥ ६ ॥ जेह त्रिण काल, नित नमें जिन हरखशु, तेह भरजल तरे जनम बाजे। अधिक भव यदि करे, तदपि निश्चय करी, सप्त चलि अष्टभव करीय सीमे || अइयो ॥ ७ ॥
॥ काय ॥ णमोणतविन्नाण सद्द सणाण, सयाणदिया सेसजतूगणाण || भवाभोज विच्छेयणं वारणाण, णमोरोहियाण वराण जिणाण ॥१॥ ॐ हो श्री अर्हद्भ्यो नमः अष्ट दन्यं यजामहे स्वाहा।