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पचपरमेष्ठी-पूजा नील वरण बज सुन्दरु, धर लावो शुभ थाल। अष्ट द्रव्य लेई करी, सेवो दीन दयाल ॥
॥ढाल ॥ (घाल-जिन गुण गानं श्रुत अमृत ) श्री उवज्माया भय हरण, भय हरणं रे देवा मय हरण || श्री० ॥ परिहर विषय विकार प्रकार, ए गुरु है अशरण शरण ॥ श्री० ॥ १॥ गुण पचवीस विराजित सुन्दर, देसत समको मन हरण ॥ श्री० ॥ तेज पंज रवि शशि सम दोपत, मिथ्या तम दरे करण || श्री० ॥२॥ सूर अर्थ दाता जगाह, मुनि मानसमें जप करणं ॥ श्री० ॥ सारण वायण चोयण करता, पडिचोयण वलि आचरण ॥ श्रा० ॥३॥ द्वादश अग पठ्या श्रुतमागर, मुमतिपर कुमति हरण || श्रो० ॥ अतिशय विद्या चूरण जागे, जिन शासन उन्नति करण || श्री० ॥ ४॥ धरम प्रभावक है उपगारी, ऐसे गुरु तारण तरणं !! श्री० ॥ नप जप आदिकनी सप करना, भय मकला निसतरण ॥ श्रो० ॥ ५॥ नाविध नावय के धारक, दमविध पिनप सदा करण ॥ श्री० ॥ माया ममता दूर निगारी,