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वृहत् पूजा संग्रह बलिहारी, क्या कहु अजब अमीरा जी ॥ ३० ॥ कोड देवता हाजर रहता, अणहुते बडवीरा जी ॥ ३० ॥ ५॥ जगजीवन जगलोचन कहिये, तुम सम अवर न धीरा जी ॥ ब० ॥ तेरे गुणको पार न पायो, सुरनर राय बजीरा जी ॥ ५० ॥ ६॥ बारै गुण प्रभु ऊपर सोहे, वृक्ष अशोक उदारा जी ॥ २० ॥ तीन छत्र भामंडल पूरी, ध्वजा फुरक रही सारा जो ॥ ब० ॥ ७ ॥ पृथ्वी पीठ सिंहासन ऊपर, राजत हो वडवीरा जी || ब० ॥ पान फूल करके बहु सोभित, राजत हो गुण पूरा जी ॥१०॥८॥ सहस जोजननो इंद्रध्वजा, प्रभु आगल चालत सारा जी ॥ब०॥ महा गोप महामाहण कहिये, निर्यामिक सथवारा जी ॥ २० ॥ ६ ॥ ऐसे अरिहंत पद की महिमा, सुणियो तुम सब प्यारा जी ॥ २० ॥ तीन लोक में इनका झंडा, पूजत है इकतारा जी ।। ब० ॥ १० ॥ अष्टद्रव्य से पूजा करतां, सदा हुवे जयकारा जी ॥ ३० ॥ धरमविशाल दयाल पसाये, सुमति कहै गुण सारा जी ॥ ब० ॥ ११ ॥ ॐ हीं परमात्मने पंचपरमेष्टीमहामन्त्रराजाय अरिहंतपदे अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ।