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सतरहभेदी-पूज कर धरे। भववृत्ति धूप करंति भोगं, रोग सोर अशुभ हरै ॥१॥
॥ राग मालवी गौडी॥ सब अरति मथनमुदार धूपं, करति गंध रसाल दे ।। देवा, कर० | धाम धूमा वलीय धूसर, कलुष पातिक गाल रे ॥ देवा, स० ॥ १ ॥ अर्ध्वगति सूचंति भविक मघमधे करनाल रे ॥ दे० ॥ चौदमी वामांग पूजा, दीये रयण विशाल रे । आरती मगल माल रे, मालवी गौडी ताल रे ॥ दे० स० ॥२॥
॥ पंचदश गीत पूजा ॥
॥दोहा॥ कठ भले आलाप करि, गावो जिनगुण गीत । भावो अधिकी भावना, पनरमी पूजा प्रीत ॥
॥ श्री रागे आर्यावृतं ॥ यद्धदनतकेवल मनंत, फल मस्ति जैनगुणगानं । गुणवर्णतानवाद्य, मात्रामापालययुक्त ॥१॥ सप्त खरसंगीतः स्थानर्जयतादि तालकरणैश्च । चंचुरचारी चारै, गीतं गानं सपीयपं ॥२॥