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सतरहभेदी-पूजा
॥राग भीम मलार॥ पुष्प बादलीया वरसै सुसमा | अहो पु० ॥ योजन अशुचिहर वर गंधोदक, मनोहर जानु समा ॥ पु० ॥१॥ गमन आगमनकी पीर नही तसु, इह जिनको अतिशय सुगुणै । गुंजत-गुंजत मधुर इम पभणे, मधुर वचन जिन गुण थुणे ।। पु० ॥२ ॥ कुसुम सुपरि सेना जो करे, तसु पीर नहीं सुमणे | समवसरण पचवरण अधोत; विध रचे सुमना सुसमा । पु० ॥ ३॥ बारमी पूज भविक तिम करे, कुसुम विकस हसी उच्चरे, तसु भीम बंधण अधरा हुचे, जे करे जै जै जिन नमा |पु० ॥४॥
॥ त्रयोदश अष्ट मगलिक पूजा ।।
॥ दोहा राग कल्याणमें ॥ तेरमी पूजा अवसरे, मंगल अष्ट विधान । युगति रचे सुमते सही, परमानन्द निधान ॥
॥ राग वसन्त ॥ अतुल विमल मिल्पा, असंड गुणे भिल्या सालि रजत तणा तंदुला ए| इलपण समाजक, पचविध वर्णके, चन्द्रकिरण जैसा ऊजला ए॥१॥ मेलि मंगल लिखे,