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( ७४ ) मनयोग ते साचा विचार करवा, असत्य मनयोग ते खोटा विचार कर. वा. सत्यासत्य मनयोग ते साचं छे पण असत्य छे, ते कोइ अांखे काणो छे तेने काणो कहेवाथी ते माणसने बहु दुःख थाय छे. बीजं पण जे जे छिद होय ते प्रगट करवाथी ते जीवने दुःख थाय छे माटे ए साचुं छे पण तेथी असत्यनुं कर्म बंधाय छे. चोथो असत्य सत्य मनयोग. ते कोइ स्त्री कंइ कारणशर परुषनो वेश पहेरीने आवी छे, ते जोइने ओलखी पण मनमां विचार आव्यो जे एने स्त्री कहीश तो एनं गोपवेलं खुल्लु थशे ने एने नुकशान थशे. ए वातना रक्षणार्थे तेने पुरुषनो वेष जोइ पुरुष कही बोलावे छे ते पोताना जाणवामां छतां बोलावधं ते असत्य छे; पण तेनुं मान जालववा कहेवू छे, वास्ते असत्य नथी. एम हरकोइने नुकशाननो बचाव करवा कहेवू थाय ते असत्य छे पण मृषा नथी, आ प्रमाणे मनमां चिंतववं ते मनयोग, ने बोलवं ते ए ज प्रमाणे वचनना पण चार योग जाणवा. हवे सात कायाना योग ते उदारिक काययोग, वैक्रिय काययोग, आहारक काययोग, उदारिक मिश्र काययोग, वैक्रियमिश्र काययोग, आहारकमिश्र काययोग, ए मिश्र काययोग जे वखत उदारिकादि शरीर तैयार नथी थयां, तेनी अगाउ होय छे, छेल्लो काभण का. ययोग एक भवमांथी बीजा भवमां जतां रस्तामा उदय थाय छे. त्यार बाद जीव आवीने पोताना पितानुं वीर्य ने माताना रुधिरनो पहेलो श्राहार ग्रहण करे छे. त्यार पछी ज्यां सुधी शरीरनी शक्ति बांधी नथी, त्यां सुधी उदारिक मिश्रयोग छे. त्यार बाद उदारिक काययोग थाय छे. ए साते योगमांथी जे जे योग प्रवर्ते, ते प्रमाणे कर्म बंधाय छे. ए प्रमाणे पांच मिथ्यात्व, बार अव्रत, पच्चीश कषाय ने पंदर योग, कुल ५७ कर्म बांधवानां कारण छे, तेमां जेटलां जेटलां प्रवर्ते, ते माफक जीव कर्म बांधे छे. वास्ते ए सत्तावन हेतुमाथी जेटलां टले तेटलां टालवानो खप करवो ने बधां खपी जशे त्यारे तो सिद्धि पामशे. ' ५४ प्रश्नः-जैनदर्शनमां कर्म बांधतां रोकवानो तथा जूनां पूर्वनां बां.
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