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(४५) आ देवतानुं आयुष्य पूरुं थयेथी मनुष्य जन्म पामुं तो हवे पूर्ण रीते प्र. भुनी आज्ञा प्रमाणे धर्म आराधन करूं के जेथी फरीने भवचक्रमां भ्रमण करवू पडे नही.” एवी भावना भावे छे. वली रत्नमय पुस्तक वांचे छे शाश्वता चैत्य मध्ये जिनबिंब छे तेनी विस्तारे भाव सहित द्रव्य तथा भाव पूजा करे छे. तीर्थकर भगवान विचरता होय त्यां जइ तेमनी भक्ति करे छे. धर्म उपदेश सांभले छे अने आत्मस्वभावमा रहेवामां सुख मानी विचरे छे. देवता संबंधी आवा ज्ञानने अवधिज्ञान कहे छे. परंतु तेमने अवधिज्ञाननां पूर्ण आवरण खप्यां नथी, पूर्ण आवरण तो मनुष्य गतिमां ज खपे छे. जेमने केवलज्ञान थाय छे तेमने ज संपर्ण आवरण नाश पामे छे.
मनःपर्यव ज्ञानावरणीय कर्म ते मनपर्यवज्ञानने आवरे छे. मनपर्यवज्ञाननां आवरण जेनां खसे छे, ते मनना भाव एटले मनमां चिंतवेली वात जाणे छे. ते पण पोताना आत्माथी ज जाणे छे. तेने इंद्रिओनी जरूर पडती नथी. ए ज्ञान संसारना त्यागी, संजमी मुनि छठे सातमे गुणठाणे वर्तनारने ज थाय छे. तेमां पण थोडां आवरण खश्यां होय तो ते ऋजुमति मनपर्यवज्ञानी कहेवाय छे. ते पुरुष मनमां चिंतवेला पदार्थ जाणे छे, ते करतां विपुलमति मन पर्यवज्ञानी घj विशुद्ध जाणे छे. ते ज्ञाननी विशुद्धि घणी छे. कारण के विपुलमति मनपर्यवज्ञानवाला ते ज भवे केवलज्ञान पामे छे. तेथी मनना विचार विशुद्धपणे जाणे छे. अहिआं कोइ कहेशे जे अवधिज्ञानी रूपी पदार्थने जाणे छे, तेमां मनना विचार पण रूपी होवाथी तेने पण जाणी शके छे. वास्ते आ ज्ञान जदूं कहेवाचं कारण शं? ते विषे जाणवं केअवधिज्ञानवालो मनपर्यवज्ञानवाला जेवू संपूर्ण जाणी शके नही. अव. धिज्ञानवालाने ते ज भवे केवलज्ञान प्राप्त थाय तेवो पण निश्चय नथी. वली मनःपर्यवज्ञानवालो मनना भाव शिवाय बीजा पदार्थ जाणी शकतो नथी. एवो एक बीजामां फेरफार छे तेनुं कारण जे कर्मनां आवरण को
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