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(४५) आवरण खुल्यां ना तथा धर्मनी खरी अभ्यास करता नथी अने निर्पक्षपात संबंधथी जोइ शकता नथी. केटलाएकने एवां आवरण होय छे के धर्मनुं ज्ञान मेलववामां सा | बुद्धि छे तेथी शास्त्र जोइ शास्त्रनी सुंदर वातनो न्यायबुद्धिथी निश्चय करे छे, पछी सार रूप शास्त्रनी वात ग्रहण करे छे अने तत्व विचारणा करे छे. केटलाएकने एवां आवरण होय छे के संसारमा बुद्धि नथी चालती तेम धर्ममां पण नथी चालती. बन्ने रीते बुद्धिनी खामी होय छे. केटलाएकने सर्व प्रकारे बुद्धि खुले छे अने बधा काममां न्यायनी ज बुद्धि प्राप्त थाय छे. खरी वातने ज खरी जाणे छे. घणा प्रकारे मतिज्ञानना आवरण नाश थयां हाय त्यारे ज एवी बुद्धि प्राप्त थाय छे. केटलाएकने बुद्धि थोडी होय पण सत्यवादी पुरुषनो संग करवानी बुद्धि जागी छे तेथी थोडी बुद्धिथी पण तेमना कह्या प्रमाणे चाली पोताना आत्मानुं काम करी शके छे. कोइक जीव कर्मना आवरण ना जोगे मृगा, कोइक अांधला अने कोइक व्हेरा पण थाय छे एटले ज्ञान वधारी शकता नथी. वली कोइ मूगा होय, कोइ बोबडा होय पण काननां आवरण खुल्लां छे तेथी धर्म सांभली पोताना आत्मानुं काम करे छे पण परने उपकार करी शकता नथी. व्हेरा होय छे पण आंखोना जोरथी पोतान केटलुंएक काम करी शके छे. अांधला होय छे पण का. नना जोरथी सांभली तेनो विचार करी पोतानुं काम करी शके छे. एवी रीते मतिज्ञानावरणी कर्मे करीने आत्मानुं ज्ञान आवरयुं होय छे तेने मतिज्ञानावरणी कर्म कहीए. . - श्रुतज्ञान तो शास्त्र तथा अक्षरनुं नाम छे. श्रा ज्ञान मतिज्ञाननी साथे ज रहे छे. ज्यां मतिज्ञान त्यां श्रुतज्ञान अने ज्यां श्रुतज्ञान त्यां मतिज्ञान समजवं. बन्ने ज्ञान साथे ज रहे छे. बन्ने कर्मनां आवरण पण साथे ज रहे छे. खले छे ते पण साथे ज खुले छे. मतिथी अंतरंगमां विचार थाय छे तेमां जे अक्षर छे ते श्रुतज्ञान छे. वर्तमान कालमां विशेष रीते तो मति तथा श्रुतज्ञान छे. तेमां जे जीवने समकित थयुं छे तेने मति श्रुत
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