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करवी योग्य होय ते करे छे. एवा मुनि कोइ प्रकारे स्वप्नमां पण विषय. नी वांछा राखता नथी अने जे विषयनी वांछाए मोहने वश पडी संयमप्रवृत्ति ने श्रावकपणानी प्रवृत्ति छोडे छे अने माने छे के अमे आत्मज्ञान साधीए छीए. ते कांइ जैनमार्गनी रीति नथी. जैनमार्गना जाणनार गणधर महाराज तथा आचार्य पण पोताना गुणस्थान प्रमाणे क्रिया करे छे. जेम के स्थविर मुनिए आत्मस्वरूपनां ज प्रश्न कस्यां छे अने गौत. मस्वामीए तेना उत्तर प्रात्मस्वरूपना ज सर्व प्रकारे बताव्या छे. पण त्यार पछी “चार महाव्रत रूप संयम हतुं ते पंच महाव्रत रूप संयम प्रतिक्रमण सहित आदरुं" ए आधिकार श्री भगवतिसूत्रमा पहेला शतकने नवमे उद्देशे छापेली प्रतमां पाने (१३१) थी छे. माटे गुणठाणानी व. तना प्रमाणे क्रिया आत्मधर्ममा अटकाव करती नथी. तेम छतां जे प्रभुनी आज्ञाथी विपरीत विचार स्थापे छे, ते सर्वज्ञना मार्गनी रति नथी. सर्वज्ञ महाराजे जेम सिद्धांतमां कडं छे तेम वर्चवामां ज कल्याण छे.
४८ प्रश्नः-आत्मा नित्य छे के अनित्य छे ? उत्तरः-आत्मा सदाकाल नित्य छे. ४९ प्रश्नः-जीव मरे छे रम बधुं जगत् कहे छे ते केम ?
उत्तरः-जीव मरतो नथी पण कर्मना संयोगे करी मनुष्य, तिर्यंच, नारकी, देवतापणुं पामे छे. तेनां शरीर संबंधि पंचेंद्रि विगेरे दश प्राण बांधे छे. स्पर्शेद्रि ते शरीर, रसेंद्रि ते जीभ, घ्राणेंद्रि ते नाक, चक्षुइंद्रि ते आंख, श्रोतेंद्रि ते कान, ए पांच इंद्रि तथा मनबल ते मननी शक्ति, वचनबल ते बोलवानी शक्ति, कायबल ते शरीरनी शक्ति, श्वासोच्छ्रास अने आयु ए दश प्राण पूर्वना कर्मथी प्राप्त थाय छे अने तेनी स्थिति परी थाय एटले तेनो विनाश थाय छे. तेने जीव मरे छे एम लोको कहे के. कारण जे जीवन स्वरूप अरूपी छे तेने कोइ देखतं नथी अने आ दश प्राणने जाइने जीव छे एम कहे छे. ज्यारे ए प्राण गया त्यारे देह जीव रहित थाय छे तेनुं कारण जे आ शरीरमां जीव रहेतो नथी. पछी
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