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( २५७ ) उत्तरः-श्राद्ध विधिमां पाने २५४ मे चोमासामा खांड, खजूर, द्राक्ष, मेवा, सूकवणी शाक, भाजी विगेरे अभक्ष कह्यां छे त्यां जोशो तो ज. णाशे. कारण के चोमासामा ए चीजोमां त्रस जीवनी उत्पत्ति थाय के माटे त्याग करवी जोइए. प्रश्नः-१८७ गुरुद्रव्य कोने कहीए ?
उत्तरः---श्राद्धविधिमा पाने १०० मे टबावाली प्रतमां वस्त्र पात्र प्र. मुख उपगरणने गुरुद्रव्य कयुं छे.
प्रश्नः-१८८ जिनबिंबनी प्रतिष्ठामां तथा दीक्षामां मुहूर्त शी री ते जोवानां छे ?
उत्तरः-में लग्नशुद्धि विगरे जैनना मुहर्त्तना ग्रंथो जोया छे, तेमांथी सामान्य रीते आ नीचे जणाव्युं छे. विशेष तो ते शास्त्र जोवाथी जणाशे.
प्रथम मास जोवा. ते मार्गशीर्ष, माघ, फागण, वैशाख, ज्येष्ठ, अषा. ढ ए मासमां प्रतिष्ठा करवी लग्नशुद्धिमां कही छे. तथा ज्योतिर्विदाभरण नामनो कालीदास पंडिते ज्योतिषनो ग्रंथ कर्यो छे, तेमां जैनप्रतिष्टानी संक्रांति कही छे, ते वृश्चिक, मकर, कुंभ, मेष, वृषभ, मिथुन, ए छ सं. क्रांतिओ कही छे. ए ग्रंथनी टीका जैनाचार्यनी करेली छे. वली प्रतिछानी विधीना टीपणामां श्रावण मास पण लखेलो छे अने श्रावण मा. समां प्रतिष्ठा थयेली पण देरासरमां जोवामां आवे छे. तत्वकेवलीगम्य. आपणा सिध्धांतमा पूनमीआ मास कह्या छे तेथी मुहूर्तमां पण तेज माफक मास लेवा.
तिथियो सामान्य रीते शुक्ल पक्षनी शुदि १० थी ते कृष्णपक्षनी वदि ५ सुधी उत्तम कही छे. तथा तिथियो प्रत्येक पण कही छे ते १-२-५. १०-१३-१५ ए शुक्लपक्षनी अने कृष्णपक्षनी १-२-५-सुंदर कही छे.
वार सोम, बुध, गुरु, शुक्र ए सुंदर कह्या छे. तथापि एशिवायनी ति. थि तथा वार सिध्धियोग युक्त होय तो लग्नशुध्धिमां सुखना मा. पनार कह्या छे.
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