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( २३६) करे छे. एवी रीते फरस इंद्रिए वस्त्र मले छे ते. संवालां के कर्कश मले छे ते बन्नेमां समभाव छे, जाणे छे के आ शरीर महारं नहि. तो सं. वालां बरसट वस्त्रनो पण म्हारे विकल्प करवो नहि. एम पांचे इंद्रि. ओना विषयमा भावी रह्या छे. कोइ पण इंद्रिने पोषवानो भावज नथी. कोइ पण विषय जोर करतो नथी. विषय उपर उदासिन भाव थयो छे. तेथी मनने खेंचीने राखवू पडतुं नथी. आत्मानी दशा सहज प्रगट थइ छ, तेथी इंद्रिओना विषय- मन थतुं ज नथी. ते पुरुषने दांत कहीए. प्रश्नः-१५९ कामनो जय ते शुं ? उत्तरः-स्त्रीने पुरुषनो अभिलाष, पुरुषने स्त्रीनो अभिलाष, नपुंसकने स्त्री पुरुष बेमो अभिलाष, एवी रीतनी कामनी इच्छाओ छे ते पोताना आत्मस्वरूपy जाणपणुं थयु छे तेथी पर स्वरूपमा वर्तवू नथी. माटे सहजे बंध थइ छे. थतीज नथी. स्वप्नामां पण स्त्री याद आवती नथी. स्त्री सामी दृष्टि पडे छे तेज वखत पोतानी दृष्टि खेंची ले छे, पण नि. रखीने जोता नथी. जेम सूर्य सामी दृष्टि पडे छे ते वखते ताप नहि सहवाथी जीव खेंची ले छे, तेम निष्कामी पुरुषे स्त्री- रूप जोवू दुःख कारी भावेलुं छे, तेथी सहजे दृष्टि पाछी खेंचाइ आवे छे. वली स्त्रीओनो संग पण करता नथीं. अने कदापि कोइ स्त्री चलाववा आवे छे तो पण चलावी शकती नथी. कदापि फरस करे तो पण पुरुषचिन्ह जागृत थतुं नथी, ने तेनी दशा पलटाती नथी. जेम सूदर्शन शेठने अभया राणीए घणाए उपसर्ग कर्या, पुरुषचिन्हने घणी विटंबना करी तो पण नपुंसक जेवू कायम रह्यु, एवा पुरुषे काम जीत्यो कहीए. माटे काम जीतीने एवी दशा बनाववी. प्रश्नः-१६० मुक्तिमां शुं सुख छे के मुक्तिनो प्रयास करवो ? उत्तरः-मुक्ति जेवां सुख आ दुनियामां नथी. अने ते विचार करशो तो तमने संसारमा खात्री थशे. संसारमा रहेलो जीव अज्ञानपणे संसार
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