________________
( २२९ ) ज उपयोग वर्ति रह्यो छे. स्वप्नमां पण कामनी वांछा नथी. अंतरंगना सुख आगल तुच्छ स्त्रीरोनां विषयसख दुःख रूप जाण्यां छे तेमने का. मनी इच्छा केम थाय ? तेथी सहजे ब्रह्मचर्य गुण प्रगट थयो छे. ए रीते दशे प्रकारे यतिधर्म प्रगट्यो छे. ते अनुक्रमे पूर्ण गुण प्रगट करशे, ने आत्मार्थि एवी रीतना उद्यम करी पुद्गलभावथी मुक्त थाय छे. प्र. थम थोडी शुद्धता थाय छे, त्यारे मार्गानुसारी थाय छे. तेथी विशेष विशुद्धिए सम्यक्तदृष्टि थाय छे. तेथी विशेष विशद्धिए श्रावकपणुं प्र. गटे छे. तेथी विशुद्धि थाय छे, त्यारे मुनिपणुं प्रगटे छे. तेमां पण जेम जेम विशुद्धि वधती जाय छे, तेम तेम गुणस्थान चडी जाय छे, ने केवलज्ञान प्रगट करे छे. एम अनुक्रमे शुद्ध थाय छे.
प्रश्नः-१४५ निर्जरातत्वना भेद अरूपीमां गण्या छे, अने कर्म छे ते तो रूपी छे तेनी निर्जरा थाय ते अरूपी केम थाय ?
उत्तरः कर्म छे ते बे प्रकारनां छे. एक द्रव्यकर्म ते आठ कर्म रूपी छे, अने बीजां भावकर्म ते अरूपी छे. हवे भावकर्म ते शुं पदार्थ छे ? द्रव्य कर्मने योगे आत्मानी अशुद्ध परिणती थाय छे राग द्वेषमय तेज भावकर्म कहीए. ते भावकर्मनी निर्जरा थाय छे, तेज निर्जरा तत्वमा गणी छे. ते निर्जरा सम्यक्दृष्टि आदि पुरुषो करे छे. सम्यक्ज्ञान विना सकामनिर्जरा थती नथी. चोथा गुणस्थानथी ते चौदमा गुणस्थान सुधी थाय छे ते निर्जरातत्वमा छे. ते शिवायना जीवो अज्ञानपणे द्रव्यकर्मनी निर्जरा करे, पण भावकर्मनी निर्जरा करी शकता नथी. माटे द्र. व्यकर्मनी निर्जरा रूपी कहीए अने भावकर्मनी अरूपी कहीए..
प्रश्नः-१४६ जीव अरूंपी छे अने नवतत्वमा जीवना भेद रूपीमां गण्या छे तेनो हेतु शुं ?
उत्तरः-जीव तो अरूपी छे पण शरीर बहार देखाय छे ते शरीर इं. द्रियो पुन्य जोगे मली छे. ते शरीर इंद्रियोथी जीव ओलखाय छे के, श्रा एकेंद्रि, आ पंचेंद्रि. माटे कर्मना संजोगथी जेवी जेवी कर्मनी मली.
Scanned by CamScanner