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( २२७ ) न मली तो पण ठीक. आ दशाना वर्तनारने कपट करवानी जरूर शी पडे के करे ? माटे निष्कपट आर्जव गुण प्रगट थवाथी सहजे वर्ते छे. निर्लोभता गुण ते पोताना शरीरने महारु जाप्यु नथी, तो लोभ शी बा. बतनो रहे ? शरीर महारं नहि ने शरीर रक्षणना पदार्थ महारा नहि. ए सर्वे जड पदार्थ उपरथी राग उतरी गयो छे, एटले लोभ शी बाबतनो करे ? माटे निर्लोभता उत्पन्न थइ छे. कंइ वस्तु शरीरनो निर्वाह करवा जोइए छे, ते वरत मली तो ले, न मली तो ते बाबतनो विकल्प नथी करता. एम विचार छ जे पुद्गलने वस्तु जोइए छे ने पुद्गलने मलती नथी. एम विचारी पुद्गलीक बत्तुनो लोभ करता नथी. त्यारे इहां कोई प्रश्न करशे के ज्ञान भणवानो लोभ होय के नहि ? ते विषे जाणवू जे ज्ञान भणवा वाचवानो लोभ पण निश्चे दशामां जाय छे, ने ज्यारे ध्यानी पुरुषो थाय छे. ने आठमे गुगस्थाने क्षपकश्रेणी मांडे छे, त्यारे ज्ञाननो लोभ पण रहेतो नथी. महारा आत्मामां अनंत ज्ञानशक्ति छे, तेमां महारे पामवू शुं छे ? जेनी पासे न होय ते वस्तु पामवानो लोभ करे छ, पण होय ते शानो लोभ करे ? तेम आ पुरुषे पोतानो सत्ताधर्म जाण्यो, ने तेमा सहज सुखनो अनुभव थयो छे अने अ. पूर्व ज्ञान पण प्रगट थयु छे एटले ज्ञान पामवानी इच्छा त्यां रोकाइ जाय छे, पण ए दशा केवलज्ञान पामवाने अंतरमुहूर्तकाल बाकी रहे छे, त्यारे थाय छे तेनी अगाउ बनती नथी. तो पण ए लोभ करे छे ते निर्लोभता करवा सारु छे. माटे निचली हदमा त्यागवा योग्य नथी पण ज्ञानना लोभे नीति मूकीने वर्ते नहि. न्यायथी चाले. एक ज्ञान मेल. ववानी इच्छा वर्चे छे, ते रूप लोभ छे पण ते इच्छा सारु संसारी जीव अन्यायनी प्रवृत्ति करे छे तेम करता नथी. मात्र सर्वे काम छोडी मुख्य पगे ज्ञाननो उद्यम करी रह्या छे. बाकी सर्वे पुद्गलीक चीज उपरथी लोभ खशी गयो छे, वली तप ते बार प्रकारनो करे छे ते सहज भावे थाय छे. आत्मानो अणाहारी गुण जाण्यो छे. आहार करवो ते महारो
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