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(२२१) से ज्ञानमां खामी छे. ते प्रगट करवाना उद्यमी थq जोइए. अहो !
जना ज्ञान प्रमाणे हजु तो मने ज्ञाननी बहु खामी छे. आवा वि. चारथी अहंकार श्रावतो नथी ने पोताना समभावमा कायम रहे छे. ज्ञान परिसह उपजे जे बीजाओ करतां पोताने बहु बोध थयो होय तेथी मनमां आवे जे, हुं ज्ञानी छु तेवो जगत्मां कोइ ज्ञानवान नथी. प्रा. वा विचार करीने कर्म बांधी आत्माने मलीन करे छे, पण ए कोण क. रे छे ? जेणे पोतानो आत्मधर्म जाण्यो नथी. ने बहारथी ज्ञान मेलव्यु छे तेवा जीवने ज्ञानीपणानो अहंकार आवे छे ने ते जीव आवते भवे अज्ञानी थशे. पण ज्ञानी जीव तो एम विचारे छे जे, मारा आत्मानो स्वभाव तो केवल ज्ञानमय छे. तेमांथी तो हजु सुधी कांइ पण ज्ञान प्रगट थयुं नथी, वली श्रुत ज्ञानी पण पूर्वे चौद पूर्वना धणी दशपूर्वना धणी थया छे. तेनी अपेक्षाए मने शुं ज्ञान थयु छ ? के हुँ अहंकार करुं ? एम पोतानी अपूर्णता भावी ज्ञाननो अहंकार करता नथी पोते पोतानी दशामा रहे छे.
हवे अज्ञान परिषह ते पोते पोताना आत्मभावने गुरु मुखे जाण्यो छे पुद्गलभावने जाणे छे तेथी स्वपर भेदनुं ज्ञान थयुं छे.ने जेम गुरु महाराज कहे छे, तेम श्रात्मतत्वनी श्रद्धा करी पोतानी आत्म दशामां वः छे, पण तर्क वितर्कनो बोध नथी, षटशास्त्रनुं ज्ञान नथी तेथी कोइनी साथे वाद करवानी शक्ति नथी. परने बोध करवानी शक्ति नथी तेथी बीजा जीवो नींदा करे छे अहो मूढ ! अहो अज्ञानी ! माथु मुंडाव्यु पण कंइ ज्ञानतो छ नहि. एवां आकरां वचन कहे छे त्यारे समभावी भुनी थोडं भण्या छे, पण पोते पोतानो विचार करू शके छे. एवा नु नि भावे छे के, ए जे कहे छे ते सत्य छे. मारामां ज्ञान नथी अने पा. छला भवनां आवरण छे तेथी मने बोध नथी त्यारे ए कहे छे. ए तो महारो सद्गुरु छे माटे एमां शी बाबतनो खेद करुं ? वली बीजी रीते शास्त्र भणे छे पण आवरणने लीधे आवडतुं नथी त्यारे जेने प्रात्मार्थि
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