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( २१७ ) पोशं? कोइ पण माणस पारकुं घर बलतुं होय तेमां पोते फिकर कर. तो नथी. तेम आ जड शरीरने करडे छे तेमां पोताने विकल्प करवानं कंड कारण नथी. तुं तारा आनंदमां रहे एम भावे छे. वली वस्त्र फा. टेलां होय वा न मले, जाडां जोइतां होय अने पातलां होय, पातलां जोइता होय ने जाडां होय एवं वस्त्र संबंधी कारण मलेथी पोताना सम भावथी खसता नथी ने विचारे छे जे वस्त्र पुद्गलने पहेरवां छे आ. त्माने वस्त्र पहेरवानां नथी तो एमां हुं शी बाबत राग द्वेष करुं ? जेवं पूर्वे कर्म बांध्यु छे तेना उदय माफक मले छे. एमां सारं शुं ? ने नबलु शुं ? आत्माने पहेरवानांज नथी तो आत्मा शी बाबत विकल्प करे ? एवा भावथी समभावमां वर्ते छे. वली शरीरे पीडा थवाथी कंइ पण प्र. कारनी अरति उत्पन्न थवानां कारण मले, पण जेणे स्वपरनुं स्वरूप जा. ण्युं छे ते पुरुष अरति चिंतवता नथी. कारण जे स्वभाव बहारनां काम बने तेमां आत्माने अरति करवानुं कंइ कारण नथी. तेथी अरति करता नथी. स्त्री परिषह ते स्त्रीरो रूपवाली आभूषणवाली कदापि इंद्रनी इंद्राणी आवीने मुनि आगल हाव भाव करे छे, विषयना चाला करे छे, आंखोनां कटाक्ष मारे छे, हास्य विनोदना शब्द बोले छे, ते सांभली मुनि विचारे छे जे अहो ! आ जीव पुद्गलना रंगमा शुं रंगाइ गया छे ! पुद्गलने शोभावाने आनंदित थाय छे ! पुद्गलना चाला करी खुशी थाय छे ! शुं जीवने अज्ञान पीडे छे ! मारे तो एनी सामुं जोवानी जरूर नथी. कारण जे अनादिकालनो हुँ पण पुद्गलनो रंगी हतो तेथी स्त्रीओनो रागी हतो हुँ पण अज्ञानपणे आ स्त्रीनी पेठे चाला करतो हतो ते चाला रखे याद आवे ! ने पाछी एना जेवी प्र. वृत्ति थाय ? माटे मारे तो कामिनीनी साथे बोलवू नहि. एना अंगो. पांग जोवाए नहि. हुँ एने जोउं तो मारा आत्मानुं श्रात्मतत्त्व भूली जउँ माटे मारे जोवू ज नहि. ए सारु ज्ञानीए पण जेम सूर्य सामीदृष्टी पडी होय ते तरत जेम खेंची लइए छीए, तेम खेंची लेवा कयुं छे.
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