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( २०८ ) अज्ञानता छे तेमज मने सुरभिगंध लागे छे, मने दुर्गधता लागे छे, मने राग सारो लागे छे. मने आ राग नबलो लागे छे, मने या स्पर्श सं. वालो लागे छे, मने आ स्पर्श बरसट लागे छे, आ बधू ए पुद्गलने थाय छे; ते छतां मने थाय छे एम मार्नु छ ए महारी अज्ञानता छे. महारं स्वरूप में न जाण्यु, तेथी हुँ मानु छं. मने मारे छे ते ९ नहि, मने गालो देछे एम मार्नु ते अज्ञानता छे. मारुं धन जतुं रह्यु, हुं धन पेदा करुं छु, में लूगडां पहे- छे, में ओढयां छे, में पार्थी छे, हुं सूतो छु, बेठो छु, आ हुं कहुं छु ते अज्ञानता छे. हुं सुखी करुं छु,. हुं दुःखी करुं छु, हुं धनवानु छु, हुं ऋध्धिवान छु, हुं परिवारवालो छु, महारं सर्वे माने छे, हुं सर्वने शिक्षा करुं छु. हुं सर्व उपर हुकम चला. q छु, हुं प्रधान छु, हुं राजा छु. श्रावा जे जे गर्व करूं छु, ते महारी अज्ञानदशाना प्रभावथी करुं छु, में घरो बांध्यां, मारुं घर पडी गयु, पण वस्तुपणे ए वस्तुज महारी नहि ते छतां महारी मानी बेठो, ते अज्ञानता छे. में धन आप्युं, में धन लीधुं, मारुं धन जतुं रह्यु, ए विकल्पो अज्ञा. नपणे हं करुं छं. में शास्त्र वांच्यां. हुं भण्यो, में भणाव्या, में चेला क. यो, में व्रत प्राप्यां लीधां, में गृहस्थ कर्या, में समजाव्या ए कांइ पण विकल्प करवा योग्य नथी. मात्र अज्ञानताना योगे अहंकार दशा प्रगट थवाथी थाय छे परवस्तु महारी नहि. पर जे पुद्गल तेने हुं करुं ने ते अहंकारना मदे करी जड कर्त्तव्यने महारी वा, में वा, हुं शब्दथी बोलू छु, पण बोलवू ए ज महारो धर्म नथी. रोग श्राव्येथी मने रोगथयो कहुँ छ पण अरूपी आत्माने रोग थाय छे ? ना ना थाय ज नहि. जे रोग थाय छे ते तो श्रा उदारिक शरीरने थाय, ते उदारिक शरीर म. हारं नहि ने महारुं मान्यु तेथी मने रोग थयो. एम मार्नु छु ते अज्ञानता छे. मने जगत् नमे छे, पूजे छे, महारी महत्वता करे छे पण जे म. हारं नाम छे ते तो पुद्गलनुं छे ते हुं पुद्गल ते हुं नहि; तो नमे के मार्नु छु ते अज्ञानता छे. अनेक प्रकारनां आभूषण धारण करी मनमा
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