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२०१) प्रीति जागे अने सत्संग करे. सत्संगथी पोतानुं स्वरूप सांभले जे निश्च य नये तो म्हारो आत्मा सर्वज्ञ तुल्य छ जो एवो श्रात्मा न रह्यो होय तो कोइ दिवस आत्मा शद्ध न थाय. आत्मा अवराय छे ते जेम स्फ. टिकने डाक मुकीए छीए तेथी स्फटिक डाक जेवा रंगनुं देखाय छे पण ते डाक निकली जाय तो जेवो निर्मल छे तेवो देखाय छे पण एवो डाक परणमी गयो नथी के फरी स्फटिकन रूप प्रगटज न थाय. तेम आत्मा. ने एवां कर्म लाग्यां नथी के कोइ काले विशुद्ध थाय नहि. कर्मनां आवरण जेम जेम खसतां जाय तेम तेम विशुद्ध थाय ने ते प्रत्यक्ष अ. नुमान थाय छे. जेम के कोइक जीव ज्ञाननो अभ्यास वधारे करे छे तो वधारे विद्वान थाय छे तो जो आवरण अभ्यासथी खसतां न होय तो बुद्धिवान केम याय ? पण एवां आवरण छे के आत्मतत्त्व प्रगट कर. वानो अभ्यास करे तो श्रावरण नाश पामे. माटे आत्मानी स्वभाविक दशा कायम छे गइ नथी, ते प्रगट करवाने व्यवहार नये गुणस्थाननो व्यवहार प्रभुजीए बताव्यो छे तेम करवो, ने तेम अभ्यास करवाथी आ. त्मा शुद्ध थशे. ने निश्चय नये अक" कह्यो छे ते पण छे. जो अक. "पणानुं निज स्वरूप न जाणे, तो शुद्ध करवानी बुद्धि थाय नहि, ने जे विभावीक करणी छे ते महारे कर्त्तापणे करवा योग्य नथी एम जाणे. माटे निश्चय नयनो पक्ष हृदयमां अच्छीतरे राखे; पण निश्चय नये आ. मा विभावना कर्त्ता छे एम ज्यां सुधी जीव जाणे त्यां सुधी आत्मा शुद्ध करवानी बुद्धि थाय नहि. ज्यां सुधी आत्मा पुद्गलभाक्नो कर्ता जाणे, त्यां सुधी शरीरे दुःख थाय तो मने दुःख थयुं, धन गयुं तो महारं धन जतुं रह्यु. स्वजननो वियोग थयो तो महारां सगां मरी गयां हवे केम करीश १ महारुं घर जतुं रह्यं. महारं वस्त्र बगडी गयु. मने मार्यो, मने गालो दे छे एम पर वस्तुमां महारापणुं जे जीव मानी रह्यो छे, ते जड पदार्थमां महारापणुं माने छे तेनुं कर्त्तापणुं माने छे. में सुखी कर्या, में दुःखी कर्या एम माने छे तेनो त्याग करी निज स्वभावमां रहे. निधे
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