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टली यतना थाय तेटली करवी. तेमां प्रमाद करे तो अयोग्य छे. ए उ. परथी कोइना मनमा एम आवशे जे समूलगा दीवा करवा नहि, पाणी फूल चडाववां नहि ए समजवू भूल भरेलुं छे. कारण जे स्थावरनी हिं. सानो कंइ श्रावकने त्याग नथी. सनी हिंसानो त्याग छे. वली प्रमाद करे तो त्रसनी हिंसा थाय ने ते प्रमाद छोडे तो प्रभुभक्तिमां स जी. वनी हिंसा थाय नहिं ने स्थावर विना तो भक्ति बनती नथी. वली श्रा. वकने प्रष्ट द्रव्ये भक्ति करवी महानिशीथजीमां तथा आवश्यकसत्र विगेरेमां योग्य कहि छे. वास्ते विस्तारे भक्ति करे ते घणो लाभ उपार्जन करे; माटे प्रमाद छोडीने जिन भक्ति करवी.
प्रश्नः-१३१ देरासरनां खातमुहर्त्त करवानी जग्या जोवानी रीत जै. ननी ने अन्यदर्शननी सरखी छे के केम ?
उत्तरः-कालीदास पंडित विक्रमराजाना अवसरमां थया छे. तेमणे ज्योतिर्विदाभरण नामनो ज्यातीष शास्त्रनो ग्रंथ कयों छे तेनी टीका जैनी आचार्यनी करेली छे. तेमां जननी रीती जूदी बतावी छे तेमज आरं. भसिरि नामे जैनग्रंथमां पण छे. वली ज्योतिर्विद्याभरण ग्रंथमा प्रतिष्ठाना नक्षत्रमा पण जैननां नक्षत्र जूदां कह्यां छे. तेथी ढुंढीयाने पण समजवू जोइए छीए के अन्यदर्शनी पण बे हजार वर्षना आसरा उपर जिनचै. त्य सिद्ध करे छे. प्रश्नः-१३२ सामायकमां घडी राखे छे ते आज्ञा छ ? उत्तरः-वृंदारवृत्तिमा घडी राखवानी कही छे ने तेमां निशीथीनी चूर्णिनी साक्षी आपी छे. प्रश्नः-१३३ श्रावकने चरवलो मुहपत्ति राखवानी मर्यादा शास्त्रमा छे ?
उत्तरः-श्रावश्यकनो बालवबोध यशविजयजी क्रत छे तेमां तथा अ. नुयोगद्दारनी छापेली टीकामां पाने ७८ मे छे. वली श्राद्धविधि निश्चय ग्रंथमा अचलगच्छनी चर्चामां पण सारी पेठे स्थापना करी छे.
प्रश्नः-१३४ श्रावकने सूत्र वांचवानी आज्ञा के के नहि ?
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