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मात्र १०००
वली जे वखत श्राव
( १६४ ) आपे छे. पण श्राद्धविधिमां पाने १०१ मे श्रावकने घरेणुं राखी पण धीरवानी मनाइ करी छे. कारण जे श्रावक ओछे व्याजे ले ने वधारे व्याज उपजावे ते फायदो देवद्रव्यमांथी काढ्यो हवे श्राद्धविधिमा सागरशेठनी कथा छे. ते कथामां फक्त देरासरना माणसने पइसा बदले अनाज आप्युं हतुं. तेमां मात्र रु. १ ) नी ८० कांगणी थाय तेमांथी ० ० ) कांगणीनो लाभ थयो हतो तेथी केटलो संसार रोलाबा. ते कथा जो वांचशो तो हृदय भेदाइ जाय एटलां कष्ट भोगववां पड्यां छे. माटे श्रावकने संकटमां पाडनार श्रापनार ज छे. क पैसा ले छे, ते वखत तो सारी हालतज होय, पण माणसनी सदा काल स्थिति सरखी रहेती नथी. त्यारे ज्यारे नबली स्थिति आवे ते वखत जो शेठीआनुं लेहेणुं तेना उपर होय तो पहेलुं लहेणुं पोतानुं वसूल करे तो शेठीया पण दूषणमां आवे, कदापी पोतानुं लहेणुं न होय पण पोते एकधर्मी छे, तेथी शरम राखी ताकीद थाय नहीं; तेथी ते धणी बीजा देवावालाने श्रापे ने देशवालाने आपे नहीं, तो देरानुं द्रव्य जाय ने लेनारने तो घणाज भव भमवुं पडे. देवद्रव्य भक्षणनां फल घणा शास्त्रमां लख्यां छे उपदेशपदमां हरिभद्रसूरी महाराजे देवद्रव्य कोइ खातो होय तेनी संभाल न राखे तो ते श्रावकने केटलां कडवां फल बताव्यां छे. ने खानारने तो भवनो पार नथी. वली श्रावकने धीरवानो धारो होय तो शेठीआ पोते पण उपाडी ले अने हालमां तो ठेर ठेर एवा बनाव बन्या छे ने ए रीवाजथी घणाज देवद्रव्यनो विनाश थयो छे ए सर्वे भाइओना जाणवामां छे. वली षष्टीशतकनी टीकामां एटला सुधी कह्युं छे जे देवद्रव्य वधारवा सारु घणुं मूल श्रापीने देरानी वस्तु ले छे ने पोते वापरे छे तो नरकगामी जीव कह्या छे. माटे देवद्रव्यथी तो जेम बने तेम अलगा रहेवुं.
वली जिनपूजा करवामां पण सर्वे उपगरण शक्तिवालाने तो पोताना घरनांज राखवां. श्रोरशिया प्रमुख पदार्थ छे ते पण श्रावको पोताना पै
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