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( १५८ ) तेनुं पाप जो आवतुं होय तो अभयदानने भगवंत वखाणत नहीं माटे जीवने कोइ मारतुं होय तो बचाववो. तेमज भूखे मरताने खवरावीने बचाववो ए अभयदानज छे. माटे विचार करवो जोइए. कारण जे स्याहा. द मार्ग समजवो. सुयगडांगजीना बीजा श्रुतस्कंधमां पांचमा अध्यन मां (छापेली प्रतमां) पाने ८७२ मे आलावामां कयुं छे जे कोइक खुदग एवं कहे जे एकेंद्रीथी ते पंचेद्री सूधीना जीवना विनाश- सरखं पाप वा, एकांत सरखं पाप नहीं. एम कहे तो अनाचार ए बंधे बोल एकांते बो. लवामां अनाचार कह्यो. हवे एना शब्दनो अर्थ कंइ बीजो नीकलवानो नथी पण प्रभुए गणधर महाराजने परमार्थ दर्शाव्यो ते पाठ परंपराए चा. ल्यो श्राव्यो ते आधारे पुर्व पुरुषोए अर्थ भरया होय तेथी अर्थ पामीए एनो खुलासो टीकाकारे करयो छे, त्यां जोशो तो जणाशे, वली पाने८७३ मे आलावो छे तेमां कडं छे के
आधाकर्मी आहार करवाथी कर्मे करी लेपाय एम एकांत न कहे, तेमज आधाकर्मी आहार करवाथी न लेपाय एम पण कहेवू न जोइए. ए वात एकांत बोलवाथी अनाचार. ए उपरथी विचार करवो जे भगवतीजी ना पाठने आधारे दाननो निषेध छे पण पाठनो अर्थ टीकाकारे करयो छे त्यां चोखं दर्शाव्युं छे ने बीजा स्थाननी गाथा मूकी छे जे अनुकंपा दान जिनेस्वरे निषेध्यु नथी एम अर्थ छे ते प्रमाणे पूर्व पुरुषना अभिप्रा यथी तो दाननो निषेध कोइ ठेकाणे नथी. सुयगडांगजीना उपला पा. नानो अर्थ पण टीकाकारना खुलासाथी आवशे. तेम आपणे लेवो जोइए ने सुयगडांगजीना पाठनो अर्थ मुखेथी कहे ते खरो मानवानो आधार शं ? ने जीवने मिथ्यात खस्युं नहीं होय ते कल्पित अर्थ माने पण थो. डो थोडो क्षय उपशम थयो हशे, ते तो महापुरुषना अर्थ प्रमाण करशे. माटे आत्मार्थिने रीतसर कहेवू ते न समजे तो कंठशोष करवो नहीं एज श्रेष्ठ छे, वली ए लोको आचारांगजीमां हिंसाना निषेधना पाठ ब. तावे छे, पण ते पाठ सर्वे मुनी महाराज सर्वथा हिंसाना त्यागीनो छे.
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