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(१५३ ) साक्षात् तत्वने पामे. बीजां पण बहु प्रकारे ध्यान आठमा प्रकाशमां छे ते जोइने ध्यावां. प्रश्नः-८५ रूपस्थ ध्यान शी रीते करवू ?
उत्तरः जोगशास्त्रमा नवमा प्रकाशमां छे. तेमाथी अल्प लखुं छु. प्र. थम भगवंत समोसरणमा बिराजमान छे ते ध्यावा. ते केवा छे ? मोक्षलक्ष्मीने सन्मुख छे. आठे कर्मना विनासना कर्त्ता, अन्य जीवने अभयदानना दातार छे. निःकलंक, अति उज्वल चंद्रबिंब सरखां त्रण छत्र मस्तक उपर धरयां छे, उलसतुं जलहलतुं छे भोमंडल तेणे करी सूर्यतेज विडंब्युं छे. देवदुंदभी भेरी मृदंग आदे अनेक वाजीत्रना शब्दे करी किन्नर गंधर्वादिकनां गीत देवांगना अप्सरादिकनां नृत्य, देवेंद्रादिकनी सेवा इत्यादिक ऋद्धिए युक्त अशोक वृक्ष शोभत छे सिंहासन, ते सिं. हासने प्रभु बेठा छे, चामर विंजाइ रह्यां छे, देव दानव दैत्य गंधर्वादिक नमी रह्या छे. मंदार पारिजातक हरीचंदन कल्पवृक्षादिक दिव्य वृक्ष तेनां पुष्पोए करी सुगंधित छे समोसरण. ते समोसरणना कोटमां मृग वाघ, सिंह, सर्प, हस्ती, अश्व आदि तीर्यच शांतपणे रह्यां छे. एक बी जानो वैरभाव प्रभु पसाए शांत थयो छे. एम अनेक अतिशय संजुक्त वी तराग भगवानने केवलज्ञानी महाराज पण वांदी रह्या छे. सर्वने पूजनीक परमेष्टी भगवंते अरीहंत श्रीवीतरागर्नु स्वरूप जोइने मनमां प्राणीने ध्यान कीजे. ते प्रभुना गुणमां एकाग्रता करीए ते रूपस्थ ध्यान कहीए. वली बीजी रीते ा प्रमाणे राग द्वेष, मद, मच्छर, क्रोध, मान, माया, लोभ, अहंकारादिक महा मोहने विकारे अलंकित छे शांत छे कांत तेजे करी जलहलतुं छे. मनोहर महा सौभाग्ये करी संजुक्त छ सरव लक्षण १०८ तेणे संजुक्त छे. अनेरे दरशने अणजाणीतुं जोगमुद्रा महात्म्य छे.
आंखने अमंद घणुं आश्चर्यकारी आणंद परम आनंदनो हेतु छे. इंद्रीयो जिती मन वश करी निर्मल चित्त हुँतो अनिमेष दृष्टीने मेषोन्मष निवा रीने एणी रीते श्री वीतरागनी प्रतिमानुरूप ध्याय तेने रूपस्थ ध्यान कहीए.
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