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लोववू, ते वंदितु कही रह्या पछी जेम राजाने अरज करी जाय, त्यारे सलाम करी जाय, तेम गुरु आगल पाप आलोववु माटे वंदन करवू जो इए तेथी वंदन करी अभुठीओ अभ्यंतर खमाववो. तेमां गुरुने खमाव्या पछी जे पाप आलोववाथी शुद्ध न थाय ते काउस्सग्गी शुद्ध थाय. ते काउस्सग्ग करवो. ते गुरुने वांदीने करवो जोइए. ते सारु गुरुने वंदन करवू. पछी सर्वने खमाववा. आयरिय उवझ्झाय कही समभावनी वृद्धि करवा, करेमिभंते कहि, जो मे देवसी अइयारोकओ कहेवो. पाप निं द्या पछी काउस्सग्गना अगारादिक सारु तस्सउत्तरी कहीने चारित्राचार नी विशुद्धि सारु बे लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, ए पांचमो आवश्यक, ते काउस्सग्ग पारी प्रभु स्तवना करवा सारु एक लोगस्स प्रगट कहेवो. सव्वलोए कही समकितनी शुद्धिने अर्थे एक लोगस्सनो काउस्सग्ग क रवो. तथा पुख्खरवरदी कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग ज्ञाननी विशुद्धि सारु करवो. इहां शंका थशे जे चारित्रनी शुद्धिनो बे लोगस्सनो केम? ते सारु त्यां कहेवू छे जे चारित्राचारमा वधारे दुषण लागे तेथी बे लोगस्सनो काउसग्ग ज्ञानीए कह्यो छे. पछी सिद्धाणं बुद्धाणं कहि, श्रुतदेवता आराधवा एक नवकारनो काउस्सग करवो. तेनुं कारण जे श्रुतज्ञानथी सर्व धर्म जणाय छे तथा वतीय छे; तो श्रुतदेवतानी सहाय्यताथी श्रुतधमनी वृद्धि थाय. मल्लवादिजीने कोइ गुरुनो योग नहि हतो पण श्रुतदेवता- आराधन करयुं तेथी श्रुतदेवता प्रसन्न थया तो बोधनी साथे जय मेलव्यो. बौधलोकोने देश बहार काढ्या. वास्ते श्रुतदेवतानो काउस्सग्ग करी थोय कहेवी. पछी पाछा क्षेत्रदेवता आराधवा एक नवकारनो काउसग्ग करवो. तेनुं कारण जे जेना क्षेत्रमा रहेवू ते क्षेत्रदेवता प्रतिकूल होय तो धर्म आराधनमां विघ्न थाय. वास्ते निर्विघ्नपणे धर्म आराधन करवा सारु एक काउसग्ग तथा थोय कहेवी. ए अधिकार आवश्यक सूत्रमा काउसग्ग नियुक्तिमां कह्यो छे. वली भत्तपञ्चख्काण पयन्नामां कह्यु के जे मुनि संथारो करे ते वखते आखो संघ क्षेत्रदेवतानो काउसरग करे.
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