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प्रकारनो छे. प्रकृतिबंध ते–कर्मनो शुभाशुभ स्वभाव, स्थितिबंध ते-कर्म केटला काल सुधी भोगवq पडशे ? तेनुं मान ते स्थितिबंध, रसबंध ते कर्म तीव्र मंद जे भोगववानं होय एवो रस होय ते रसबंध. प्रदेशबंध ते-कर्मना दलीयानुं मलवू, ए ज्यारे जीव कर्म बांधे छे, ते जे वखत जे अध्यवसाय वर्ते छे तेवू कर्म बांधे छे. तेनो उदय काल प्राप्त थाय छे, त्यारे दुःख भोगववां पडे छे. आत्मानी ज्ञानशक्ति अनंती छे, पण ए कर्मयोग अवराइ गइ छे. माटे हे चेतन ! जे जे सुख दुःख आवे छे तेमां तुं राग द्वेष मा कर, राग द्वेष कस्या छे तेथी श्रा कर्म बांध्यां छे ने आ जन्म मरण रोगादिकनां विचित्र दुःख भोगववां पडे छे. माटे चेतन! जे जे कर्मविपाक उदय आव्या छे. ते ते कर्मना स्वभाव छे तेवू बने छे, त्हारो स्वभाव तो जाणवा देखवानो छे ते जाणी ले, पण अज्ञानताथी अनादिका. लनो अभ्यास पड्यो छे तेथी मने दुःख थाय छे, पीडा थाय छे, एम करे छे ते हवे न कर. हवे तो तुं त्हारा स्वरूपनो विचार कर ने समभावे रहें. ए ज त्हारो धर्म छे. तुं समभावे रहीश एटले राग द्वेषमय प्रकृति बनशे नहि. एटले सहजे ए कर्म क्षय थशे. आज सुधी तुं त्हारा स्वभावने जाणतो नहोतो. हवे त्हारो स्वभाव ते जाण्यो ते छतां श्रा जड प्रवृतिमां शा सारु लेवाय छे ? एवी रीते जीजा पायामां ध्यान करे.
चोथो संस्थानविचय धर्मध्यान. तेमां चौदराज लोकनुं स्वरूप विचारे चौदराज लोकमां जे जे पदार्थ जेवी रीते रह्या छे, ते विचारे. छए द्रव्य रह्या छे ते विचारे. छए द्रव्यनुं स्वरूप विचारे. पछी तेमां आत्माना द्रव्य साथे बीजा द्रव्यनुं स्वरूप विचारे के, जे जे गुण आत्मामा छे, ते बीजा द्रव्यमां नथी. ते हे चेतन ! शा कारणसर ए द्रव्यमां म्हारापणुं माने छे ? एम विचारी पोताना स्वरूपमां लीन थाय छे. मन वचन काया पण ते ज स्वरूपमा स्थिर थइ जाय छे. अनुभव ज्ञान स्वभाविक प्रगट थाय छे. ए ज्ञान प्रगट थाय ते अनुभव ज्ञान- सुख जाणे. ए सुख कोइथी कडं जतुं नथी. पोताना आत्मतत्त्वमा एकाग्रता थवाथी आनंद थाय छे,
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