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( १०५ ) आहारादिक बनाववा पण नथी. गृहस्थने त्यांथी जे वखत जे चीज मली, तेथी संतोष करी राजी दिलगीर थता नथी. एवी रीते त्रेवीश विषय त्याग
या छे. कषाय ते बार तो गया छे अने चार जे संज्वलना रह्या छे ते पातला थया छे. विकथा ते राजकथा ते राजा संबंधी वात करवी. देशकथा ते देशोनी वातो करवी. भक्तकथा ते भोजननी कथा करवी. स्त्रीकथा ते स्त्री संबंधी वातो करवी. ए चार विकथानो त्याग थइ जाय छे. निद्राजेनुं रूप मोहनीकर्ममां कह्युं छे ते निद्रा त्रण - निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, श्रीणद्धि एत्रणे जाय छे. ए रीते पांचे प्रमादनो नाश थवाथी अप्रमाद गुणठाणं क्रवाय छे. ए गुणस्थानमा आत्मविशुद्धि वधारे थाय छे. पण छठ्ठा तथा सातमा गुणस्थाननो काल अंतरमुहूर्त्तनो छे ते वली पडीने छठे जाय छे. वली सातमे आवे छे अध्यवसायनो फेरफार थया करे छे तेम गुणस्थान फरे छे. तेमां पण सातमा गुणस्थाननुं अंतर्मुहूर्त्त लघु छे ने छठ्ठा गुणस्थाननुं अंतर्मुहूर्त्त म्होटुं तेमां एटलो अंतर पडे छे के, श्राखा आउखा सुधीमां सातमे रह्यानो काल एकठो करीए तो उण बे घडी करतां वधे नहि. ने छट्ठा गुणस्थाननो बाकी सर्व काल थाय. ए अधिकार भगवती सूत्रनी टीकामां छापेली प्रतमां पाने २७२ में छे. श्रप्रमाद गुणस्थाननो विशेष अधिकार कर्मग्रंथथी जाणवो. ए विशुद्धभावनुं स्थानक छे. ए गुणस्थानमां धर्मध्यानमां वधारे काल जाय छे. ते धर्मध्यान चार प्रकारे छे.
पहेलो पायो श्राज्ञाविचय ते - परमात्मानी आज्ञानुं ध्यान करे. परमात्मानी आज्ञा केवी छे ? अविच्छिन्न छे. वली परमात्मानां वचन छे ते निराबाध छे; कोइ प्रकारनो दोष नथी. आत्मानी सत्ता अनंत ज्ञानमय, अनंत दर्शनमय, अनंत चारित्रमय, अनंत तपमय, अनंत उपयोगमय छे. ए आत्मानी सत्ता छे ते स्वरूपमा रहेवुं, एं आज्ञा छे. एवी रीते पहेला पायामां ध्यान करे.
बीजो पायो पायविचय तेमां ध्यान करे जे अनंत ज्ञानमय आत्मा
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